धार के विपरीत - ग्रेस कुजूर

 ऐसा क्‍यों होता है

कि गांव की काकी के खेतों में

कोई हल नहीं चलाता

और घर के उसके टूटे छप्‍पर से

बारिश के दिनों में

झरता है पानी

झर... झर...


लेकिन कल जोरदार बारिश हुई है

नदी नालों में बहते

पानी की तेज धार के विपरीत

चढ आई हैं मछलियां

उसके ऑंगन तक


'छत चढ़ने का अधिकार नहीं'

यह जानते हुए भी

चढ़ जाती है काकी

छत छारने...।   

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